गुरुवार, 25 जुलाई 2013

बहुमुखी प्रतिभा के धनी: मंगल सक्सेना
सृजन-दृष्टि-
'साहित्य-सृजन मे मैं अपने अनुभव को अभिव्यक्त करने की उद्दाम प्रेरणा को ही सृजन का आधार मानता हूं। मैं उन्हीं रचनाओं को रचता हूं जो मानवता को गरिमा देने वाली हों।'
                                                                                    -मंगल सक्सेना

मंगल सक्सेना

भारतीय संस्कृति की समग्र चेतना के संवाहक 76 वर्षीय मंगल सक्सेना बहुमुखी प्रतिभा के धनी हैं। मूलत: कवि, अंशत: पत्रकार, अधिकांशत: नाट्यकर्मी और सम्पूर्णत: सृजनात्मक चेतना के प्रतिष्ठापक मंगल सक्सेना के दो काव्य-संग्रह 'मैं तुम्हारा स्वर' और 'कपट का सीना फाड़ो' (अकिंचन शर्मा के साथ)प्रकाशित हैं। दो दर्जन से अधिक नाटक निर्देशित किए हैं, इतने ही नाटक लिखे भी हैं। तीस से अधिक नाट्य शिविरों का आयोजन करके लगभग ढाई हजार से लड़के-लड़कियों को प्रशिक्षण दिया है। सक्सेना राजस्थान साहित्य अकादमी के सचिव (1964-67) और राजस्थान संगीत नाटक अकादमी के अध्यक्ष (1984-87) भी रहे हैं। साहित्य अकादमी ने आपको 'विशिष्ट साहित्यकार' (1984-85) के रूप में सम्मानित किया, राजस्थान विद्यापीठ, उदयपुर ने 'साहित्य श्री निधि' का सम्मान दिया तथा आपको उत्तर क्षेत्र सांस्कृतिक केन्द्र पटियाला और उत्तर मध्य क्षेत्र सांस्कृतिक केन्द्र इलाहाबाद की संचालिका में भी सदस्य मनोनीत किया गया। अंतरप्रांतीय  साहित्यकार बंधुत्व कार्यक्रम योजना के अन्तर्गत राजस्थान-गुजरात बंधुत्व सम्मेलन में दो बार प्रतिनिधित्व भी किया।
मंगलजी का जन्म (14 मई, 1936) बीकानेर में हुआ और इण्टर तक की शिक्षा भी वहीं पूरी की। दस वर्ष की आयु में उनकी पहली कविता शिशु पत्रिका में प्रकाशित हुई। चौथी कक्षा तक आते-आते काव्य रचना और नाटकों में अभिनय करने लगे। बाद में छात्र राजनीति में सक्रिय हुए। एक गीत नाटिका लिखी, छात्रसंघ की संगीत नाटक समिति के अध्यक्ष बने। यूथ फेस्टीवल उदयपुर में कालेज की तरफ से नाट्य प्रतिनिधित्व मिला। 'साहित्यिक' संस्था का गठन किया। श्री हरीश भादाणी, ओंकार श्री, व श्री यादवेन्द्र शर्मा 'चन्द्र' जैसे साहित्यकारों के साथ दैनिक विचार मंथन, गोष्ठियों व सांस्कृतिक गतिविधियों में अपनी अग्रणी सहभागिता रखी। इस समय तक वे उद्बोधन, आह्वान और क्रांति चेतना वाली कविताएं रचते रहे तथा लोहियावादी समाजवाद से प्रभावित रहे। इसी दौरान 'पराग' रंगमंचीय बाल नाटक प्रतियोगिता में आपके नाटक 'चंदामामा की जय' को प्रथम पुरस्कार मिला। फिर एक और बाल नाटक 'आदत सुधार दवाखाना' भी प्रकाशित हुआ। आगे चलकर बाल नाटक विधा में ही वे अधिक यशस्वी हुए।
सन् 1957 में मंगलजी अजमेर आ गए। यहीं राजकीय महाविद्यालय में पढ़ते हुए बी.ए. की डिग्री प्राप्त की और दयानन्द महाविद्यालय से समाजशास्त्र में एम.ए. किया। राजकीय महाविद्यालय में दो वर्ष तक सर्वश्रेष्ठ अभिनेता का पुरस्कार लिया। साथ ही 'न्याय' अखबार में स्तम्भ लेखन व खोजी पत्रकारिता विधा में उल्लेखनीय कार्य किया। सन् 1962 में तत्कालीन जिलाधीश श्री टी.एन. चतुर्वेदी और पुलिस अधीक्षक श्री पिलानिया के साथ नगर में घूम-घूम कर ओजस्वी काव्य-पाठ करते हुए सैनिकों की सहायतार्थ कोष एकत्र कराया। उसी दौरान मंगल सक्सेना व अकिंचन शर्मा का कविता संग्रह कपट का सीना फाड़ो पश्चिमी रेलवे ने प्रकाशित किया तथा उसकी बिक्री से सैनिक सहायता राशि भेजी। इस समय तक मंगलजी की छवि ओजस्वी कवि, प्रखर पत्रकार और राष्ट्रीय चेतना के कर्मठ संवाहक के रूप में स्थापित हो चुकी थी।
सन् 1964 में उन्हें राजस्थान साहित्य अकादमी का सचिव नियुक्त किया गया। उक्त पद पर रहते हुए नवोदित साहित्यकारों की 39 पुस्तकें प्रकाशित की। अकादमी की त्रैमासिक पत्रिका 'मधुमती' को मासिक किया। सन् 1967 में उन्होंने यह पद छोड़ दिया। इसके बाद 28 फरवरी, 1968 में उन्होंने उदयपुर में प्रयोगधर्मी चित्रकारों की संस्था 'टखमण-28' गठित की। तीन वर्ष तक इसका संयोजन- संवर्धन किया और फिर स्वयं को इससे मुक्त कर लिया। यह संस्था आज भी सक्रिय है और इसके अनेक चित्रकार राष्ट्रीय स्तर पर सम्मानित हुए हैं। बात वही कि सृजन चेतना चाहे कवि की हो अथवा नाटककार की-मंगलजी ने उसे ऊर्ध्वगामी बनाने में भरसक मदद की।
1973 में मंगल सक्सेना ने राजस्थान में नाट्य आंदोलन का प्रारंभ किया। अन्तर्मन में बीजांकुरित जो नाट्यकर्मी अंशत: सक्रिय था वह अनायास ही सम्पूर्ण क्षमता के साथ आगे बढ़ा। इसके तहत उन्होंने उदयपुर में 'त्रिवेणी' और बीकानेर में 'संकल्प' संस्था का गठन किया। उदयपुर, अजमेर, बीकानेर, बाड़मेर व सीकर आदि अनेक शहरों में  उन्होंने नाट्य शिविरों का आयोजन करके अनेक नई प्रतिभाओं को प्रशिक्षित किया। 1983 में नाट्य रचना वक्त गुजरात, गोवा, उत्तर प्रदेश, मध्यप्रदेश व दिल्ली में नाट्य कार्यशालाओं, प्रशिक्षण-शिविरों व गोष्ठियों में अपना महत्त्वपूर्ण रचनात्मक सहयोग दिया है।
मंगलजी ने शिक्षा जगत् में भारतीय संस्कृति की व्यापकता के परिप्रेक्ष्य की दृष्टि से शिक्षकों को नाटक की शास्त्रीयता व आधुनिकता से परिचय कराने हेतु अनेक व्याख्यान दिए हैं। सन् 1984 से 1987 तक वे राजस्थान संगीत नाटक अकादमी, जोधपुर के अध्यक्ष रहे।
आपकी कुछ अन्य गतिविधियां-पश्चिमी क्षेत्र सांस्कृतिक केन्द्र, उदयपुर की स्थापना में योगदान, पणजी में नाट्य शिविर का निर्देशन, केन्द्रीय संगीत नाटक अकादमी की तरफ से लखनऊ, नागौर, भोपाल व दिल्ली में नाट्य विशेषज्ञ की हैसियत से भागीदारी व भारत भवन में नाट्य स्कूल-पाठ्यक्रम पर आयोजित सेमिनार का प्रवर्तन आदि है।
मृदुभाषी, दार्शनिक व्यक्तित्व के धनी इस विख्यात रंगचेता को राजस्थान साहित्य अकादमी, नगर परिषद् अजमेर, जिला प्रशासन, बाड़मेर सहित अनेकानेक संस्थाओं ने सम्मानित व पुरस्कृत किया है। इनके अलावा कुछ अन्य महत्त्वपूर्ण सम्मान-
राजस्थान संगीत नाटक अकादमी द्वारा नाट्य निर्देशन के लिए 'अकादमी अवार्ड'(2001-2002)
राजस्थान विद्यापीठ उदयपुर द्वारा 'साहित्यश्री निधि' के सम्मान-सम्बोधन से समादृत।
बाल कल्याण परिषद् कानपुर द्वारा बाल साहित्य विधा में उल्लेखनीय योगदान के लिए सम्मानित।
राजस्थान पत्रिका सृजनात्मक साहित्य पुरस्कार से सम्मानित (कविता प्यार का रिश्ता-राजस्थान पत्रिका के रविवारीय परिशिष्ट 8 मई, 2005 में प्रकाशित)।
भारतीय लोक कला मंडल, उदयपुर ने अपना मानद आजीवन सदस्य के रूप में चुनाव किया।
कुमार संभव और दुर्गा सप्तशती पर आधारित नृत्य-नाटिकाओं का लेखन, जिनका विभिन्न मंचों पर प्रदर्शन हुआ।
अन्य
दो कविता संग्रह, दो बाल उपन्यास के अलावा लगभग तीस अन्य पुस्तकों का प्रकाशन, राजस्थान साहित्य अकादमी द्वारा प्रकाशित काव्य-संकलन, कथा-संकलन व गद्यगीत संकलनों में इनकी रचनाएं सम्मिलित। विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में अनेक रचनाएं प्रकाशित। आकाशवाणी के अजमेर, जयपुर, बीकानेर, उदयपुर सहित अन्य प्रसारण केन्द्रों से रचनाएं प्रसारित।
आकाशवाणी द्वारा सर्वभाषा कवि सम्मेलन में डोगरी व कन्नड़ कविताओं का अनुवाद।
राजस्थान साहित्य अकादमी ने प्रथम फैलोशिप प्रदान की और विशिष्ट साहित्यकार के रूप में सम्मानित किया।

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें