सोमवार, 1 जुलाई 2013


रमी की छुट्टियों में शालू और संगीत दादाजी के गाँव आए थे। छुट्टियां कैसे पँख लगाकर उड़ गईं, पता ही नहीं चला। पापा भी उन्हें लेने आ ही गए। दादा-दादी से विदा लेकर वे स्टेशन आ गए थे। वे जैसे ही स्टेशन पहुंचे वहाँ कई बच्चों के हाथों में फूलमालाएं देखकर पापा सोचने लगे, शायद कोई नेता आने वाला हो। लेकिन उनके आश्चर्य का ठिकाना न रहा जब उन्होंने देखा कि बच्चे तो शालू और संगीत को मालाएं पहना रहे हैं। वे प्रसन्न भाव से अपने बच्चों से गाँव के बच्चों की आत्मीयता देख रहे थे। सोच रहे थे कमाल है,पूरे गाँव के बच्चों से दोस्ती!
'नमस्कार साहब।' एक आवाज से पापा चौंके। उन्होंने देखा, कुरता पायजामा पहने और कंधे पर झोला लटकाए एक व्यक्ति उनसे ही नमस्कार कर रहा था।
'आप शालू और संगीत के पिता हैं?'
'ज ....जी हाँ, आप?'
'जी मेरा नाम मनोहर है। मैं पर्यावरण चेतना के लिए गाँव के बच्चों को जागरूक करने का काम करता हूँ।' उन्होंने बताया-'आपके दोनों बच्चों ने इस काम में मेरी बहुत मदद की है। इन्हीं के कारण मैं गाँव के बच्चों को पर्यावरण के बारे में बहुत कुछ बता सका हूँ। कुछ ही दिन में आपके बच्चे पूरे गाँव के बच्चों के चहेते बन गए हैं।'
तभी इंजन ने सीटी दी। शालू और संगीत पापा के पास आ गए। मनोहरजी को देखकर उन्होंने आदर से सिर झुकाकर प्रणाम किया। 'खुश रहो बच्चों' कहते हुए उन्होंने दोनों के सिर पर स्नेह से हाथ फेरा और बोले-'हम सभी तुम्हें याद रखेंगे...आशा करते हैं कि फिर जल्दी ही तुम दोनों गाँव आओगे।'
दोनों पापा के साथ गाड़ी में चढ़ गए। गाड़ी धीरे-धीरे प्लेटफार्म छोडऩे लगी। खिड़की से दोनों हाथ हिला रहे थे और जवाब में अनेक नन्हे-नन्हे प्रकृति प्रेमी हाथ हिल रहे थे। और चिल्ला रहे थे-'फिर आना गाँव हमारे।'
पापा ने पूछा, 'भई, यह सब क्या था?'
'पापा, एक दिन हम गाँव की चौपाल में गए थे, जहाँ मनोहर सर पर्यावरण चेतना के बारे में बच्चों को जानकारी देते थे। हमें वहाँ जाना अच्छा लगा सो रोज ही जाने लगे।' संगीत बोला।
तभी शालू चहकी-'पापा,सचमुच बहुत मजा आता था। एक दिन उन्होंने बताया कि प्रकृति को प्रतिकूल बनाकर नहीं रहा जा सकता। इसकी शिक्षा हर बच्चे को मिलनी चाहिए। उनके  कहे अनुसार ही हमने गाँव में सूर्योदय से पहले उठने की आदत डाल ली। सूर्य नमस्कार करना भी उन्हीं से सीखा, प्रात:कालीन सैर, दादाजी के घर के आसपास के खाली स्थानों पर पौधे लगाने का काम भी किया। बच्चों को साफ-सफाई से रहने के लाभ भी बताए।'
'हमें खुशी है कि मनोहर सर के मार्गदर्शन में हम गाँव के बच्चों में बहुत कुछ बदलाव कर सके। संगीत ने कहा। एक पल रुक कर फिर बोला-'पापा, वहाँ हमने देखा कि अनेक घर ऐसे थे जहाँ गंदा पानी वहीं इकट्ठा  हो रहा था। सर के साथ हम दोनों ने भी उन घरों के बच्चों को समझाया कि घर के बाहर गंदा पानी जमा नहीं होने देना चाहिए। इससे मक्खी-मच्छर पनपते हैं, बीमारियां फैलती हैं। कई बच्चे तो ऐसे भी थे जो कई-कई दिन नहाते ही नहीं थे। उन्हें भी हमने शरीर की नित्य सफाई के बारे में बताया।'
पापा बहुत ध्यान से, और गर्व से अपने बच्चों की बातें सुन रहे थे।
'पापा, एक दिन सर ने गाँव के बच्चों को आसपास के वृक्षों, फूलों, पशु-पक्षियों, नदी-तालाब के बारे में भी बताया कि इन्हें मामूली नहीं समझना चाहिए। ये सभी प्रकृति की संतानें हैं, इसलिए इन्हें बनाए रखने में अपना पूरा योगदान देना चाहिए।' संगीत बोला। 
'भैया, सर ने यह भी तो बताया था कि प्रकृति मनुष्य की हर आवश्यकता को पूरा करती है, इसलिए हम सभी की भी जिम्मेदारी है कि हम प्रकृति की रक्षा के लिए अपनी ओर से भी कुछ न कुछ प्रयास करते रहें।' शालू ने जैसे याद दिलाते हुए कहा।
'हाँ पापा, पहली बार, इन छुट्टियों में हमने प्रकृति को बहुत नजदीक से देखा, समझा और जाना कि प्रकृति से खिलवाड़ करेंगे तो वह हमारे लिए ही नुकसानदायक होगा।'
पापा बोले-'यह तो बहुत ही अच्छी बात है। अच्छा यह बताओ कि घर लौटकर भी प्रकृति प्रेम बनाए रखोगे या फिर भूल जाओगे?'
'बिलकुल नहीं पापा, बल्कि स्कूल में अन्य साथियों को भी यह सब बताएंगे और कहेंगे कि प्रकृति को प्रतिकूल बनाकर नहीं रहा जा सकता।' शालू और संगीत दोनों एक साथ बोले।
'पापा, अब हम अगली छुट्टियों में फिर से गाँव जाएंगे।' शालू बोली।
'हाँ, बेटा, जरूर जाना।' पापा ने कहा। अपने बच्चों का यह प्रकृति प्रेम देखकर वे बहुत खुश थे कि बच्चों का गाँव आना सार्थक रहा।
गाड़ी तेज गति से दौड़ रही थी।

-सुधीर सक्सेना 'सुधि'
75/44, क्षिप्रा पथ
मानसरोवर, जयपुर-302020
मो. 09413418701
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