बुधवार, 28 नवंबर 2012

कविता- मुक्त हँसी

मुक्त हँसी



मैं मुक्त हँसी हूँ

रौशनी ने मुझे घेर रखा है।
अँधेरे में छिपे उदास चेहरो
तुम भी रौशनी में आ जाओ
मेरे संग-संग मुक्त हँसी का गीत गाओ।

सुनो!
जब हम साथ मिलकर हँसेंगे,
ज्वालामुखी के मुहाने बैठी दुनिया की
शक्ल बदल जाएगी।

कविता में जब होगी हलचल,
ज़िंदगी मुक्त हँसी में
ढल जाएगी!

-सुधीर सक्सेना 'सुधि'

मंगलवार, 27 नवंबर 2012

कविता- प्रार्थना को चहचहाने के बाद.....

 प्रार्थना को चहचहाने के बाद.....

एक प्रार्थना की तरह है
उस चिड़िया का जीवन...
जो अकेली है
अपने घोंसले में।
ज़रूरी है प्रार्थना
क्योंकि चिड़िया को अभी और
जीने की अभिलाषा है।
मुक्त आकाश में विचरने का मोह
भंग हो गया होता तो
बात समझ में भी आती,
लेकिन घोंसले की तनहाई से मोह
छूटता जो नहीं !
सोचती है चिड़िया और फिर
ख़ुशी से फुदकती है,
प्रार्थना को चहचहाने के बाद।

-सुधीर सक्सेना 'सुधि'