बुधवार, 26 मार्च 2014


कविता
प्यारा-सा शब्द प्यार.....
मौसम चाहे कैसा भी हो
किसी भी देश का हो,
कोई फर्क नहीं पड़ता।
बस, अकेले होने पर ही सताते हैं
मौसम के विविध रंग।
लेकिन जब साथ होता है कोई
तो बांटते-बंटाते सुख-दु:ख.....
संग-साथ होने का एहसास दिलाते
हंसते-हंसाते बिता देते हैं मौसम के रंग।
दुश्मनी के अनेक रंग हो ही नहीं सकते
सिवाय एक सुर्ख रंग बहा देने के
लेकिन प्यार के तो विविध रंग होते हैं
और प्यार में डूबा सुर्ख रंग भी
बहुत प्यारा लगता है.....
प्यार तो चन्द्रमा है, पुष्प की सुगंध है,
बहता नीर है, समीरण है,
उमड़ता-घुमड़ता बादल है,
तारों की झिलमिलाहट है.....
दोस्ती के नाम पर दुश्मनी का
खलनायकी संदेश फैलाने वाले
हरकारो!
जब कभी तुम भी
अलग-थलग पड़कर
थकावट महसूस करो
यदि तुम्हें भी
प्यार करने वालों की तरह
एक होकर जीने की
अभिलाषा होने लगे,
मौसमों के सुख-दु:ख
बांटने-बंटाने की चाह
सताने लगे, तो
सबसे पहले मन की
खिड़की खोलकर रखना।
प्यार भरी दस्तक देती
सूर्य की पंछी-रश्मियां
उन रंगों से सराबोर कर देंगी
जिन रंगों को तुमने इंद्रधनुष में ही
देखा होगा।
फिर तुम
प्यार करने वालों से,
प्यार करने का सलीका सीखना।
और तुम पाओगे कि अरे,
प्यार में डूबा सुर्ख रंग भी
बहुत प्यारा लगता है.....
प्यारा-सा शब्द प्यार.....!!

-सुधीर सक्सेना 'सुधि'


















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