यह अनुभव कितना अच्छा है।
कोई मुझको ढूंढ़ रहा है।
बहुत विकल रहती है चिडिय़ा,
उसे न जाने क्या खतरा है।
शाम ढले तुमको देखा था,
शायद आँखों का धोखा है।
उस में डूब गया तब जाना,
वो तो यादों का दरिया है।
खुशबू का होना ना होना,
कई बार मिलता-जुलता है।
हरी घास, सर्दी की रातें,
हम तुम दूर, भला लगता है।
पंछी के पदचिह्न तटों पर,
इससे बढ़कर क्या लिखना है।
-गोपाल गर्ग
rachna drishtigat nahin hai, sirf shirshak hai
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