शुक्रवार, 13 दिसंबर 2013


लघु कथा
हड़बड़ी 

पूनम पीहर आई हुई थी। उसकी नई भाभी उसके लिए चाय लेकर आई। पूनम ने देखा-भाभी को। वह जैसे आत्मविश्वास से स्वयं को भरपूर बनाए रखना चाह रही थी। लेकिन वह डगमगा ही गया। टेबिल पर ट्रे रखते समय कप से चाय छलछला ही गई। माँ ने उसे डांटा-''बहू तुमसे कोई भी काम कभी ठीक से नहीं होता। अरे यह तो पूनम थी, सोचो यदि कोई और होता तो तुम्हारे इस फूहड़पन पर न जाने क्या सोचता। क्या तुम अपने घर में भी इसी तरह काम करती थीं ? कभी माँ ने सिखाया नहीं काम का सलीका ? ऐसी भी क्या हड़बड़ी ?'' नई बहू सिर झुकाए जाने लगी।
''भाभी यहां बैठो।'' पूनम ने भाभी के हाथ पकड कर बैठा लिया। सकुची, सहमी बहू बैठ गई।
''हां बेटा पूनम और सुनो, तेरी सास तुझे तंग तो नहीं करती न ?''
''नहीं माँ, बिलकुल नहीं।''
''देखा, इसे कहते हैं संस्कार। मैंने इसे हर काम को सलीके से करने की आदत जो डलवाई थी। भाग खुल गए तेरी सास के तो, जो उसे इतनी समझदार बहू के रूप में मेरी बेटी मिली है।''
माँ ने बहू की ओर देखते हुए कहा- ''एक मैं हूं जो इसे झेलना पड़  रहा है।''
पूनम ने भाभी की ओर देखा। उसकी आँखें गीली हो आई थी। उसने भाभी के आंसुओं को गालों पर आने ही नहीं दिया। हाथ बढा कर आंसू पोंछ दिए। माँ हुअं करके रह गई।
पूनम बोली, ''हां माँ, सुनो! मेरी सास बहुत समझदार है। किस बात को कब, किस तरह कहना है, यह वो अच्छी तरह जानती है।''
''क्या मतलब ?''
''माँ, क्या आप समझती हैं कि मुझसे वहां कभी कोई गलती नहीं हुई होगी ? आपको बताऊं। जब मैं नई-नई ही थी, सासू जी की दो सहेलियां आई थीं। मैं उनके लिए ट्रे में पानी के गिलास रख कर ले गई। मुझसे भी ट्रे टेबिल पर रखते हुए एक गिलास गिर गया था। सारा पानी बह गया।''
''फिर..... तेरी सास ने तुझे डांटा तो नहीं ?'' बीती हुई बात को आज जानकर माँ घबरा गई।
''नहीं माँ, बिलकुल नहीं। उन्होंने कहा- ''बिटिया, ठीक से खाओगी-पीओगी नहीं तो हाथ से बर्तन ही छूटेंगे..... सारा वातावरण सहज हँसी से भर उठा। फिर सास ने मेरे सिर पर प्यार से हाथ फेरकर कहा-''बेटी, जाओ आराम कर लो। सुबह से काम कर रही हो। जबकि माँ, मैं तो सुबह देर तक सो कर उठी थी। मैं जब जाने लगी थी तो सास के ये शब्द मेरे कानों में पड़े , ''नई नई है, धीरे-धीरे सब ठीक हो जाएगा। नई जगह, नए लोगों के बीच एडजस्ट करने में समय तो लगता ही है। धीरे-धीरे प्यार से समझाकर पारंगत कर दूंगी।''
उसने देखा, माँ की ओर कि वो भी समझ गई थी कि सास की हड़बड़ी  ठीक नहीं है। तभी उसे प्रमाण भी मिल गया। माँ ने भाभी के सिर पर हाथ फेरा था। भाभी की आँखों से इस बार दो मोती निकल ही आए। पूनम ने इस बार उन्हें बहने दिया। हां, उसने महसूस किया कि इस बार माँ की आँखें भी गीली हो आई हैं। उसे माँ, भाभी की सास नहीं, बल्कि उनकी भी माँ ही दिखी। वह आश्वस्त हो गई।
-सुधीर सक्सेना ’सुधि'

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