शनिवार, 9 जून 2012

गंधों के देवता !

मंगल सक्सेना का गीत

गंधों के देवता !


गंधों के देवता !

फिर मुझे सँवार लो !!
संकरी सुविधाओं से
फिर मुझे बुहार लो !!

गली-गली, चौराहे, नीमों पर झूल रहे
ओ मेरे संबंधी ! मुझको ही भूल रहे

आवारा सज्जनता !
मुझे भी उबार लो !!
जीने से ऊब गया
अंगना उतार लो !
गंधों के देवता !

तुम तो सर्वांग मधुर वास बने रहते हो
देते हो तृप्ति और प्यास बने रहते हो

सुखदायी आकुलता !
अब मुझे पुकार लो
तन-मन तो टूट रहा
प्राण भी उधार लो !

गंधों के देवता!
फिर मुझे सँवार लो !!

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