बुधवार, 28 नवंबर 2012

कविता- मुक्त हँसी

मुक्त हँसी



मैं मुक्त हँसी हूँ

रौशनी ने मुझे घेर रखा है।
अँधेरे में छिपे उदास चेहरो
तुम भी रौशनी में आ जाओ
मेरे संग-संग मुक्त हँसी का गीत गाओ।

सुनो!
जब हम साथ मिलकर हँसेंगे,
ज्वालामुखी के मुहाने बैठी दुनिया की
शक्ल बदल जाएगी।

कविता में जब होगी हलचल,
ज़िंदगी मुक्त हँसी में
ढल जाएगी!

-सुधीर सक्सेना 'सुधि'

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